संशोधन ये बताते है, की झूठ बोलने की आदत न केवल नैतिक तौर पर आपका पतन करती है बल्कि मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए भी नुकसानदायक हो सकती है।
डेलीमेल वेबसाइट पर प्रकाशित शोध की मानें तो जो लोग झूठ अधिक बोलते हैं उन्हें तनाव और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं
के अलावा, गला खराब होने या सिरदर्द जैसी शारीरिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
इस शोध के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के शोधकर्ताओं ने झूठ बोलने की प्रवृत्ति और इससे सेहत के संबंध के विषय पर अध्ययन करके यह दावा किया है।
कितना झूठ कर सकता है नुकसान:
यूनिवर्सिटी ऑफ नोट्रे डेम के शोधकर्ताओं ने यह शोध 18 से 71 साल के 110 लोगों पर किया गया है।
शोध में पाया गया कि अमूमन लोग एक दिन में एक या दो बार झूठ बोलते हैं जबकि हफ्ते बर में 10 से 11 बार झूठ बोलते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, औसतन तीन बार झूठ बोलने पर चार तरह की मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकती है और तीन तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता।
शोध में पाया कि जो लोग कम झूठ बोलते हैं या नहीं बोलते हैं, वे अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ रहते हैं और ज्यादा जीते हैं।
हम झूठ बोलकर किसका नुकसान करते हैं?
गौतम बुद्ध (Gautuam Buddh) ने कहा था कि 'आप जैसा सोचते हैं, वैसे ही हो जाते हैं',
साइंस ने इस बात को साबित किया है कि ब्रेन किसी बर्ताव के दोहराव से उसका आदी हो जाता है. झूठ और सच का विज्ञान वाकई दिलचस्प है. झूठ या सच बोलने की प्रवृत्ति पर साइंटिफिक अध्ययन हो चुके हैं.
हिटलर (Adolf Hitler) के प्रोपैगैंडा का सिद्धांत था 'झूठ पुख़्ता ढंग से बोलो और बार बार बोलो, तो लोग उसे सच मानने लगेंगे'. लेकिन, नाज़ियों (Nazis) को यह विज्ञान नहीं पता था कि झूठ बोलना, झूठ बोलने वाले का कितना नुकसान करता है. कुछ ही समय पहले वैज्ञानिकों ने स्टडीज़ (Scientific Study) के बाद बताया कि झूठ बोलने से व्यक्ति का कम समय के लिए कोई फायदा भले हो, लंबे समय के लिए बड़ा नुकसान होता है. वहीं, सच बोलने या ईमानदारी बरतने से भले ही लगे कि नुकसान ज़्यादा होगा, लेकिन बड़ा फ़ायदा होता है.
रिसर्चरों ने देखा कि ऐमिग्डाल में जो निगेटिव रिएक्शन पहले झूठ के वक्त दिखते हैं, वो तब नहीं दिखते जब आप झूठ बोलने के आदी हो जाते हैं. तब मस्तिष्क में तनाव नहीं होता. इसका मतलब वैज्ञानिकों ने साफ बताया कि आप जितना झूठ बोलते हैं, आप उतने आदी होते जाते हैं. यानी झूठ बोलना केमिकल और साइकोलॉजिकल तौर पर आपके अंदर ऐसी टेंडेंसी पैदा करता है, जिससे आपका कैरेक्टर खराब हो जाता है.
जी हां, झूठ और सच बोलने के पीछे पूरा विज्ञान है. समाज, मीडिया और सियासत से हम बहुत हद तक रोज़मर्रा जीवन में जुड़े हैं इसलिए झूठ सुनने या झूठ के बारे में सुनने के आदी हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि लोग झूठ आखिर क्यों बोलते हैं, झूठ या सच बोलने के पीछे विज्ञान क्या कहता है और झूठ बोलने से बचा कैसे जा सकता है... एक के बाद एक पहलू को समझते हैं.
हम झूठ बोलते ही क्यों हैं?
कई वजहें हो सकती हैं. किसी सज़ा या अपमान से बचने, ज़्यादा फायदा पाने, ताकत, पैसा, प्रमोशन या इंप्रेशन जमाने जैसी कई वजहों से लोग झूठ बोलते हैं. अर्थ समझा जाए तो किसी तरह के लाभ पाने या किसी तरह के नुकसान से बचने के लिए झूठ बोला जाता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में रिसर्चरों ने देखा कि पहला बड़ा झूठ बोलते वक्त ब्रेन के एक हिस्से ऐमिग्डाल में नकारात्मक सिग्नल यानी परेशानी के संकेत दिखते हैं.
यहां यह भी समझना ज़रूरी है कि कोई जन्म से झूठ बोलना नहीं सीखता यानी यह प्राकृतिक टेंडेंसी नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि साथ के वयस्कों, समाज और मीडिया से बच्चे झूठ बोलना सीखते हैं. और बचपन ही सही उम्र है, जब झूठ बोलने की टेंडेंसी पर रोक लगाना ज़रूरी है.
स्रोत:
1. Catching liars: Training mental health and legal professionals to detect high-stakes lies:J Shaw, S Porter, L Ten Brinke - The Journal of Forensic , Google Scholar
2. Psychiatry …, 2013 - Taylor & Francis
disguise—an experimental study on cheating,Journal of the European Economic Association 11 (3), 525-547, 2013 Google Scholar
3. White lies:Sanjiv Erat, Uri Gneezy
Management Science 58 (4), 723-733, 2012
Google Scholar
No comments:
Post a Comment